नैन सिंह रावत ने पेड़ पौधों को ही अपने बच्चे मान लिया 30 वर्षों से कर रहे हैं प्रकृति की सेवा।
लक्ष्मण सिंह नेगी ज्योर्तिमठ (जोशीमठ)
क्षेत्र का सीमांत गांव है जो जनजाति का गांव है यहां पर नैनसिंह रावत निवास करते हैं उनकी उम्र 85 वर्ष पार हो चुकी है उम्र की चौथी अवस्था में भी प्रकृति के संरक्षण के लिए अपना जीवन प्रकृति को समर्पित कर दिया है उन्होंने अपने गांव के चारों तरफ हरियाली लौटा दी है वह कहते हैं कि उन्होंने 30 वर्षों से प्रकृति संरक्षण का काम शुरू किया था उन्हें बच्चों की तरह पालन पोषण किया मुझे प्रेरणा एक फॉरेस्ट गार्ड राणा दी वे हमारी हमारे गांव में आए थे ।
वे मलारी के निवासी है और उन्होंने ने वृक्षारोपण के लिए पौधे उपलब्ध कराये उन्हीं दिनों से वे पौधों की संरक्षण के लिए कुदाल, फावड़ा लेकर चल पड़े और कभी पीछे नहीं देखा उनके गांव के ग्राम प्रधान लक्ष्मी देवी कहती है कि उन्होंने मेहर गांव के ऊपर जंगल लगाने में अहम योगदान दिया है वे पानी डालने से लेकर सुरक्षा में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा रहा है गांव वालों ने उस वनीकरण का नाम गांव वालों ने नैनसिंह रावत के नाम नाम पर रख दिया है।
इस बनीकरण में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क जोशीमठ का भी अहम योगदान रहा है नैन सिंह रावत के बिना यह कार्य संभव नहीं था मेहर गांव के वन पंचायत सरपंच रणजीत सिंह कहते हैं जब में छोटा था तो उनके साथ पौधे लगाने में हम लोग भी शामिल होते थे किंतु हम पौधे लगाने के बाद ध्यान नहीं दे पाते थे किंतु नैन सिंह रावत गर्मियों में पौधों को पानी देने पौधे लगाने का काम निरंतर करते रहे अब हमारे गांव में हरियाली लौट आयी है इसका योगदान हम इन्हीं को देते हैं।
नैन सिंह रावत ने अपने गांव मेहर गांव में 40 से भी अधिक सेव के पौधे लगाए आज सभी पौधे फल देने लगे हैं वे लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत है उम्र की दहलीज पर खड़े हैं फिर भी प्रकृति संरक्षण का जज्बा उनके दिल में है वह कहते हैं कि संसार ही मेरा परिवार है प्रकृति ही मेरा घर है पौधे लगाना ही मेरा धर्म है अब उनको आंख कम दिखाई देती है किंतु अपने किए हुए कार्य बखूबी से व्यक्त करते हैं उन्होंने बताया कि जब हम पौधों का रोपण आज से 26 वर्ष पूर्व कर रहे थे उसमें पानी का बड़ा संकट था हम लोगों ने किसी तरह पाइप इकट्ठा करके गधेरे से पानी लाकर पौधों में सिंचाई का काम किया तभी पौधे जीवित रह पाये। वह बताते हैं कि आज हमारे जंगल में अमेश, देवदार,पागर, मोरपंखी, भोजपत्र के 1000 से भी अधिक पेड़ तैयार हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि यह जंगल हमने भगवती नंदा को समर्पित किया है हमारे देवताओं के मंदिर के काम ऊपर यह हरा भरा जंगल तैयार हो गया है भविष्य के लोगों को भी इन पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए।
वह कहते हैं कि गरीबों के कारण वह स्कूल के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाये किंतु उनका संघर्ष किसी वैज्ञानिक से कम नहीं है आज भी वे कहते हैं कि मुझे अक्षर ज्ञान से अधिक कुछ नहीं है और अपने ही गांव में पहली कक्षा से स्कूल छोड़ दिया था।
गरीबी और निर्धनता में जीवन यापन करने के बाद भी जहां लोग पैसे कमाने की होड़ में अपने गांव छोड़कर बाहर चले जाते हैं वह कहते हैं उन्होंने अपना गांव कभी नहीं छोड़ा और सदैव संघर्ष से ही अपना जीवन यापन किया आज भी हंसमुख चेहरा गालों में झुर्रियां जरूर है किंतु संघर्ष की गाथा उनके हाथों पर दिखती है वह मेहनत का साथ आज के जलवायु परिवर्तन के संकट से बचाने में सहायक हैं और लोगों को प्रेरणा देते हैं ऐसे महान पुरुषों को प्रणाम आज के नौजवानों के लिए एक प्रेरणा के स्रोत है जिन्होंने प्रकृति को ही अपना बेटा मान लिया हो।