प्रशासन से फरियाद करने पर भी नगर क्षेत्र गौचर को आवारा पशुओं से अभी तक कोई राहत नहीं मिली*

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*प्रशासन से फरियाद करने पर भी नगर क्षेत्र गौचर को आवारा पशुओं से अभी तक कोई राहत नहीं मिली*

चमोली / गोचर

ललिता प्रसाद लखेडा

प्रशासन से शिकायत करने के बावजूद भी कास्तकारों को आवारा जानवरों से निजात मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। इससे कास्तकारों में भारी रोष व्याप्त है जो कभी भी आंदोलन का रुप अख्तियार कर सकता है।


क्षेत्र में इन दिनों आवारा जानवरों की बाड़ सी आ गई है। पशुपालन विभाग की लच्चर कार्यप्रणाली के चलते आस पास के लोग बेकार साबित हो रहे जानवरों को गौचर की‌ सीमा में छोड़ दे रहे हैं। पशु स्वामी कौन है इसकी पहचान के लिए पशुपालन विभाग द्वारा पशुओं के काऩों पर टैग लगाया जाता है। लेकिन ताजुब तो इस का बात का है कि अपने पशुओं पर टैग लगाने से मना करने वाले कास्तकार को पशुपालन विभाग से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रहने का डर दिखाकर जबरन टैग लगाया जाता है।इसका दूसरा पहलू यह भी था कि जानवरों को लावारिस छोड़ने पर टैग के माध्यम से पशु स्वामी की पहचान कर उस पर आवश्यक कार्यवाही की जा सके। लेकिन ताजुब तो इस बात का है कि क्षेत्र में लंपी बीमारी के दस्तक देने के बावजूद भी पशुपालन विभाग आवारा जानवरों की रोकथाम के मामले में हाथ हाथ धरे बैठा है। हांलांकि क्षेत्र की जनता को आवारा जानवरों से निजात दिलाने के लिए गौ सदन भी खोला गया है। सरकार इस गौ सदन को प्रति वर्ष दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता भी देती है।बावजूद इसके कृष्णा गौ सदन ने गायों के संरक्षण से हाथ खड़े कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि सरकार ने गौ सदन को आर्थिक सहायता देनी बंद कर दी है।इन दिनों क्षेत्र में धान की फसल पककर तैयार है। आवारा जानवर जहां रात दिन फसलों को भारी नुक़सान पहुंचा रहे हैं वहीं बीमारी को बढ़ावा देने के साथ ही जहां तहां गंदगी भी फैला रहे हैं।विगत 22, सितंबर को आयोजित गौचर मेले की बैठक में व्यापार संघ अध्यक्ष राकेश लिंगवाल ने आवारा जानवरों से निजात दिलाने की मांग की थी अधिकांश लोगों ने उनकी इस मांग का समर्थन किया था। बावजूद इसके आज तक कास्तकारों को आवारा जानवरों से निजात नहीं दिलाई गई है।

प्रगतिशील कास्तकार कंचन कनवासी, विजया गुसाईं,किसमती गुसाईं , उर्मिला धरियाल, पुष्कर चौहान, आदि का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि कास्तकारों का सुनने वाला कोई नहीं है अब उनके पास आंदोलन के सिवा दूसरा विकल्प नहीं रह गया है।


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