गौचर / चमोली।
ललिता प्रसाद लखेड़ा
हिमालय के वरद् पुत्र स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की 105 वें जन्म दिन पर कर्णप्रयाग में उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दी गई।
हिमालय के वरद् पुत्र स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी को उनकी 105 वें जन्म दिन पर याद करते हुऐ उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गई। तथा भारत सरकार से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी को भारत रत्न दिऐ जाने की पुनः मांग की गई है।
चमोली जिला मोटर यातायात समिति कर्णप्रयाग स्थित सभागार में उनके समर्थकों द्वारा स्वर्गीय हेमवती नन्दन बहुगुणा जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुऐ कहा कि बहुगुणा जी के द्वारा गढ़वाल और कुमाऊं में ऐतिहासिक कार्य कर यहां की सेवा की है। स्वर्गीय बहुगुणा जी के समर्थक कार्यकर्ता, भाजपा प्रदेश कार्य समिति सदस्य एडवोकेट भुवन नौटियाल की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं नये भारत के निर्माण में राष्ट की अग्रिम पंक्ति के हिमालय के वरद् पुत्र स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी की सेवाओं, संघर्ष एवं उपलब्धियो को देखते हुऐ भारत सरकार में विगत 35 वर्षों से निरन्तर भारत रत्न देने की मांग की जाती रही है।
पुनः इस प्रस्ताव पर विचार किये जाने का आग्रह किया गया है। रत्न देकर गढ़वालियों के स्वतंत्रता संग्राम , नये भारत के निर्माण एवं शौर्य को सम्मान दिया जाय।
भाजपा कार्यसमिति सदस्य भुवन नौटियाल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार ने स्व. बहुगुणा जी को अनेक बार अपमानित किया चाहे उ. प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटाने, वर्ष 1980 के उ. प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुगुणा जी के समर्थकों को टिकट नहीं दिए जाने का मामला हो, या फिर संजय गांधी द्वारा अपमानित करने पर कांग्रेस की सदस्यता से ही नहीं बल्कि लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने का मामला हो, इन सब से टकराकर बहुगुणा जी ने संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा।
गढ़वाल लोकसभा के ऐतिहासिक चुनाव में तो कांग्रेस और इंदिरा गांधी ने साम दाम दण्ड भेद के साथ बहुगुणा जी को हराने का षड्यंत्र किया लेकिन गढ़वाल की महान जनता ने बहुगुणा जी को हराने नहीं दिया।
भुवन नौटियाल बताते हैं कि गढ़वाल के कांग्रेस नेताओं, बैरिस्टर मुकुन्दी लाल, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, हेमवती नंदन बहुगुणा, भैरव दत्त धूलिया, गढ़केशरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, डा . शिवानंद नौटियाल को राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर पर नेतृत्व के अवसरों को छीनने का नेहरू गांधी परिवार ने हमेशा प्रयास किया।
अन्यथा बैरिस्टर मुकुन्दी लाल एवं हेमवती नंदन बहुगुणा देश के प्रधानमंत्री होते और डा. शिवानंद नौटियाल उत्तराखंड राज्य की प्रथम निर्वाचित विधानसभा व सरकार के मुख्यमंत्री होते।