चमोली
कत्यूरी राजाओं की कुलदेवी हुआ करती थी लाता नंदा देवी उत्तराखंड राज्य के सीमांत जिला चमोली देवभूमि के कई आयामों से जाना जाता है यहां विश्व की सबसे लंबी सांस्कृतिक एवं धार्मिक यात्रा नंदा राजा इसी जिले मैं संपन्न होती है 285 किलोमीटर की धार्मिक एवं सांस्कृतिक यात्रा अपने में अलग पहचान रखती है यहां पंच बद्री पंच केदार मंदिरों के अलावा कहीं सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय सौंदर्य पूर्ण तीर्थ स्थान है जिनकी अपनी पहचान है जोशीमठ विकासखंड के अंतर्गत तपोवन न्याय पंचायत के अंतर्गत लाता नंदा देवी का मंदिर भी प्रसिद्ध धामों में से एक है ।
पैन खंडा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला यह सिद्ध पीठ जोशीमठ से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लाता नंदा देवी के बारे में इतिहासकारों डॉक्टर शिव प्रसाद डबराल एवं डॉक्टर शिव प्रसाद नैथानी की तीर्थ मंदिर पुस्तक में विवरण मिलता है कि लाता नंदा देवी कत्यूरी पूर्व राजवंशों की कुलदेवी थी इसके प्रमाण भी मिलते हैं जोशीमठ का प्राचीन नाम आज भी कार्तिकेय पुरम के नाम से जाना जाता है जब कत्यूरी राजाओं की राजधानी जोशीमठ थी और उनका पूरा क्षेत्र तिब्बत तक था उस समय ठंड के दिनों में कत्यूरी राजवंश की राजधानी तपोवन के पास गरम कुंड के समीप चले जाती थी और लाता कत्यूरी शासन की कुलदेवी थी जहां पर आज भी मंदिर की बनावट को देखकर लगता है कि ऊंचा ताप वाला मंदिर नागर शैली का गर्भगृह की शैली को देखकर लगता है इस मंदिर का निर्माण कस्तूरी राजाओं ने किया होगा किया होगा लाता नंदा देवी के बारे में लाता के पूर्वजों का मानना है कि नंदा देवी की मूल मूर्ति है जो विग्रह दिखाई देता है वह बाललंपा की मूर्ति है लाता नंदा देवी की वास्तविक स्वरूप है उसका 64 मुंह वाला लोहे की तलवार श्री भगवती का स्वरूप है इस तलवार पर लगभग 2 किलो घी का लेपन किया जाता है जो इस पर भी लगाता है उसकी आंखों में पट्टी बांधकर के वह तलवार परघी काक लेपन करता है भगवती नंदा के 64 जोगनी का भी स्वरूप यहां दिखाई देता है यहां जब भी अष्ट बलियाँ का आयोजन होता है 64 वलियों का भी आयोजन होता है भगवती काली की जो ओखली है उसमें 63बकरी और 64 वाँ बेला की बलि दी जाती है ।
पूरे रक्त से ओखली नहीं भर पाती कुछ समय से इस तरह की पूजा यहां पर संपन्न नहीं हो सकी किंतु यह स्थान शक्तिपीठों में है लाता गांव लगभग 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक पहाड़ी गांव है जहां 80 के लगभग परिवार निवास करते हैं सभी अनुसूचित जनजाति के परिवार निवास करते हैं यहां मंदिर में नंदा अष्टमी के पावन पर्व पर भव्य मेला लगता है इसके अलावा वैशाखी की शुक्ल पक्ष के समय 7 से 8 दिन का भव्य मेले का आयोजन होता है इसके अलावा समय-समय देवी के पूजन होता रहता है यहां दूर-दूर से लोग अपनी मन्नतें लेकर भी आते भगवती नंदा के अवतारी पुरुष के अलावा यहां दाणू भूमियाल देवता यहां के इष्ट देवता है जो अवतारी है किसी न किसी रूप पर इनके अवतार देखे जाते हैं ।
लाता नंदा देवी के मंदिर के बारे में लेखकों का मानना है की लाता नंदा देवी मैं जो 64 मुंह वाला तलवार है वह आकाश मार्ग से गिरी मानी जाती है । यहां कैसे पहुंचे ऋषिकेश हरिद्वार से सीधा बस कार जीप से जोशीमठ 250 किलोमीटर और यहां से 30 किलोमीटर बस कार जीप से मंदिर पहुंचा जा सकता है मात्र 1 किलोमीटर पैदल रास्ता है यहां मंदिर के पुजारी से संपर्क करने के बाद मंदिर में दर्शन हो सकते हैं कुछ दिनों के लिए मंदिर बंद रहता है की जानकारी आपको पहले करनी होगी।