जय भोले के उदघोषों के साथ बाबा तुंगनाथ के कपाट बंद* *होने के अवसर पर* *सैकड़ों की संख्या में पहुंचे* *भक्त* *मांगल गीतों के साथ डोली हुई तुंगनाथ धाम से रवाना* *प्रथम रात्रि प्रवास के लिए डोली पहुंची चोपता*

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रुद्रप्रयाग

*जय भोले के उदघोषों के साथ बाबा तुंगनाथ के कपाट बंद*
*कपाट बंद* *होने के अवसर पर* *सैकड़ों की संख्या में पहुंचे* *भक्त*

*मांगल गीतों के साथ डोली हुई तुंगनाथ धाम से रवाना*

*प्रथम रात्रि प्रवास के लिए डोली पहुंची चोपता*


पंच केदारों में तृतीय केदार व चन्द्रशिला की तलहटी में बसे भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट शनिवार दोपहर बाद लगनानुसार शीतकाल के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ बंद कर दिए गए। कपाट बन्द होने के पावन अवसर पर सैकड़ों भक्तों ने तुंगनाथ धाम पहुंच कर कपाट बन्द होने के साक्षी बने और जय भोले के उदघोषों के साथ चोपता तक भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली का भव्य स्वागत किया।
बह्मबेला पर विद्वान आचार्यों, वेदपाठियों ने पंचाग पूजन के तहत भगवान तुंगनाथ सहित तैतीस कोटि देवी-देवताओं का आहवान कर आरती उतारी और श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग पर जलाभिषेक कर मनौती मांगी। ठीक दस बजे भगवान तुंगनाथ के कपाट बन्द होने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ब्राह्मणों के वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ भगवान तुंगनाथ के स्वयभू लिंग को चन्दन, पुष्प, अक्षत्र, फल, भृंगराज से समाधि दी गयी तथा भगवान शंकर शीतकाल के छः माह जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हो गये।

कपाट बंद होते ही तुंगनाथ की चल विग्रह डोली ने मंदिर की तीन परिक्रमा की। इसके बाद भक्तों ने डोली के साथ शीतकालीन गद्दीस्थल मक्कूमठ की ओर प्रस्थान किया। उत्सव डोली पहले पड़ाव चोपता में प्रथम रात्रि प्रवास के लिए पहुंची। यहां स्थानीय व्यापारियों व सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली का भव्य स्वागत किया। 31  अक्टूबर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली चोपता से रवाना होकर विभिन्न यात्रा पड़ाव पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड  पहुंचेगी। एक नवंबर को भनकुण्ड  से रवाना होकर शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मन्दिर मक्कूमठ पहुंचेगी।


जहां पर छह माह तक शीतकाल में भगवान की पूजा अर्चना होगी। वहीं कपाट बंद होने के अवसर पर श्रद्धालु भोले के भजनों पर मन्दिर परिसर में झूमते रहे। साथ ही स्थानीय महिलाओं ने मांगल गीतों के साथ डोली को धाम से विदा किया। 


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