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हिमालय के 2024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौरा देवी का मंदिर अत्यधिक प्राचीन माना जाता है यो यो पंच केदार के कल्पेश्वर घाटी में देवग्राम मे स्थित है

Pushkar Singh Negi by Pushkar Singh Negi
December 25, 2021
in अन्य, उत्तराखण्ड, चमोली
हिमालय के 2024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौरा देवी का मंदिर अत्यधिक प्राचीन माना जाता है यो यो पंच केदार के कल्पेश्वर घाटी में देवग्राम मे स्थित है
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चमोली

शक्तिपीठ के रूप में जानी जाती है गौरजा भवानी पंच केदार की धरती श्री कल्पेश्वर धाम में गौरी माता का प्राचीन मंदिर है ऐसा माना जाता है राजा हिमालय और मैना की लाडली बेटी उसका नाम पार्वती था ।और जब शिव से शादी का प्रस्ताव देव ऋषि नारद लेकर आये थे तो राजा हिमालय व मैना ने उसे स्वीकार किया । जब शिव की शादी के लिए बारात राजा हिमालय के यहां पहुंची अर्थात मध्य हिमालय में तो वहां पर शिव के बारातियों ने तंबू लगा दिया और भूत बेताल राक्षस गण यहां रुक गये।

काफी समय हो गया बाराती वही रूके रहे जव राजा हिमालय के यहां बारात नहीं पहुंची तव राजा हिमालय की पत्नी मैंना ने तय किया कि मैं अपनी बेटी पार्वती के पति को देखने जाती हूं अंतर्यामी भगवान शंकर को मालूम हो गया कि पार्वती की माता मैनावती मुझे देखने आ रही है भगवान शंकर ने अपना स्वरूप बदल दिया अत्यधिक काले रुप मे सर्पों की माला बाघगम्बर और गले में नरमुंड की मालाधारी बन गये और जो दिव्य प्रकाश था उसको कम कर दिया राजा हिमालय की पत्नी मैंनावती शिव के उस तंबू में पहुंची जहां भगवान शंकर का आसन लगाया था भगवान शंकर एक अद्भुत जोगी भेष में औघोरी की तरह विराजमान देख कर के उन्हें बड़ी निराशा हुई कि मेरी बेटी पर्वती की शादी इस तरह के अघोरी के साथ हो रही है । पार्वती की दिव्यता को देख कर के मैंना ने कहा कि हमारा संकल्प बेकार है और निराश हो कर के वापस राजा हिमालय के राज दरबार में पहुंच गई मैना की निराशा को देख कर के पार्वती को बड़ी उत्सुकता हुई कि मेरी मां को क्या हो गया पार्वती को मां मैनावती ने पूरा विवरण सुनाया पार्वती विचलित नहीं हुई उसने कहा मां में परण कर चुकी हूँ कि मेरी शादी उसीअघोरी के साथ ही होगी।

मैंना ने कहा कि हे पार्वती अपने रूप को तुम छुपा दो और तुम भी काले स्वरूप मैं रहो पार्वती थोड़ी दूर जाकर फ्ँयूँली के फूल मैं अपना रूप को छुपा देती है ऐसी लोककथा है कि भगवान शंकर जाकर के पार्वती के उस रूप को चुरा लेते हैं और वापस राजमहल आ जाती है अंतर्यामी भगवान शंकर को मालूम हो जाता है कि पार्वती ने अपने स्वरूप को बदल दिया है। शिव जी नारद को राजा हिमालय के यहां भेजते हैं और कहते हैं कि कि आप पार्वती को देख कर आना है नारद शीघ्र ही राजा हिमालय के यहां आकर के पार्वती को देखना चाहते हैं पार्वती के स्वरूप को देखकर वह कहते हैं कि हमारी बहू अत्यधिक काली है हम शादी नहीं करेंगे पार्वती और मैना रोने लगते हैं और कहते हैं कि तुम्हारा बर अर्थात शिव भी तो काले हैं नारद कहता है कि मेरे साथ चलो मैं शिव के दर्शन कर आता हूं कि वह कितने सुंदर है जब मैंना देव ऋषि नारद के साथ भगवान शंकर के तंबू स्थल में पहुंचती हैं भगवान शंकर अपना स्वरूप बदल देते हैं वह बड़े दिव्यता में नारायण स्वरूप अत्यधिक सुंदर प्रसन्न मुद्रा में दिखते हैं यह सब देख कर के मैनावती के भ्रम दूर हो जाते हैं और वापस अपने राजमहल में लौट आती है राज महल में आकर की पार्वती को कहती है कि तुम अपना पुराना स्वरूप को वापस आ जाओ पार्वती जाती है जिस फूल में अपना स्वरूप रखा था उसको देखती है वह फूल तो अंतर्यामी भगवान शंकर ने पहले ही चुरा लिया था वहां जाकर खाली हाथ वापस लौट आती है।

इस सब को देख कर के पार्वती अधिक निराश हो जाती है वर पक्ष के द्वारा निरंतर कहा जाता है कि कि वह अब पार्वती से शादी नहीं करेंगे काफी संवाद के बाद भगवान शंकर को दया आ जाती है कोई पार्वती की स्वरूप को वापस देते इसीलिए पार्वती का एक नाम गौरा भी है किसी दिन से ऐसी मान्यता है गौराजी को यह स्वरूप मिला हुवा है नअधिक सुंदर और नहीं वह अत्यधिक काली गेहूं के रंग के बराबर उनकी सुंदरता रही है यह वर्णन लोक जागरण में शिव पार्वती के विवाह के समय आता है आज भी कल्पेश्वर की धरती में चैत्र मास के नवरात्र के समय शिव पार्वती 9 दिन तक मेले का आयोजन होता है नंदा अष्टमी के पर्व पर फुल नारायण में घर की पंचनाम देवताओं के नंदा देवी के मेले में इस तरह की लोक जागर का गायन किया जाता है।

 

मध्य हिमालय के 2024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौरा देवी का मंदिर अत्यधिक प्राचीन माना जाता है यो यो पंच केदार के कल्पेश्वर घाटी में देवग्राम मे स्थित है यहां पर प्राचीन देव वृक्ष देवदार जो 45 फीट मोटा लगभग सौ से डेढ़ सौ फीट ऊंचा है इन सब प्राचीन लोक कथा एवं इतिहास के बहुमूल्य दस्तावेजों से मालूम चलता है भगवान शंकर के अति प्राचीन एवं महत्वपूर्ण स्थानों में है ।इस मंदिर में रखे गए दर्जनों पुरातत्व महत्व की मूर्तियों को देखकर लगता है कि वह क्षेत्र अत्यधिक प्राचीन है मंदिर में 5 कुंटल से भी अधिक वजन का शेर और 12 कुंटल से अधिक वजन का शेर मुख्य द्वार पर है मंदिर के अंदर शिवलिंग कार्तिक स्वामी की प्रतिमा भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति महालक्ष्मी की मूर्ति मां पार्वती की मूर्ति के अलावा अन्य कई मूर्तियां विराजमान है।

क्षेत्र के नदी कई अन्य धार्मिक तीर्थ एवं पर्यटन के स्थान हैं जिसमें श्री कल्पेश्वर धाम वंशी नारायण फूल नारायण आदि स्थान है। कैसे पहुंची हो – ऋषिकेश से बद्रीनाथ मोटर मार्ग की अति निकट हेंलग 229 किलोमीटर तक जीप कार बस मोटरसाइकिल से यहां पहुंचा जाता है यहां से 14 किलोमीटर जीप कार मोटरसाइकिल से देव ग्राम के निकट यह मंदिर स्थित है।

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